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नवंबर 21, 2010

घर



तुम्हारा घर जहाज़ का लंगर न बने, बल्कि मस्तूल बने| तुम दरवाज़े में से गुज़र सको, इसके लिए तुम अपने पंख समेटो मत और कहीं छत से टकरा न जाएँ इसलिए सिरों को झुकाओ मत, कहीं दीवारें दरककर गिर न पड़े, इसलिए साँस लेने से डरो मत|

तुम उन मकबरों में मत रहो जो मुर्दों ने जीवितों के लिए बनाये हैं| भले ही तुम्हारा घर भव्य और सुन्दर न हो, लेकिन तुम्हारा घर न तो तुम्हारे राज़ों को छुपाये और न तुम्हारी तृष्णाओं का आश्रय हो|

क्योंकि वह जो तुममे अनंत है, आकाश के महल में रहता है, जिसका फाटक प्रभात का कोहरा है और जिसकी खिड़कियाँ रात की रागनियाँ और खामोशियाँ है |
                                                                                       -खलील जिब्रान