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जनवरी 25, 2012

परदा


मैं मौत के बाद भी जीऊँगा,  और मैं तुम्हारे कानों में गाऊँगा,
मैं तुम्हारे आसन पर बैठूँगा हालाँकि बिना शरीर के

और मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे खेतों में जाऊँगा
एक अदृश्य आत्मा बनकर,
मैं तुम्हारे पास तुम्हारी आग के सहारे बैठूँगा 
एक अदृश्य अतिथि बनकर,

मौत तो कुछ भी नहीं बदलती, परदे के अलावा
जो की हमारे चेहरे पर पड़ा रहता है,

 - खलील जिब्रान 



जनवरी 09, 2012

सात बार अपनी आत्मा से घृणा


मैंने सात बार अपनी आत्मा से घृणा की -

पहली बार, जब मैंने उसे उच्चता प्राप्ति की अभिलाषा में हतोत्साह पाया|

दूसरी बार, जब मैंने उसे अपंग के सामने लंगड़ाते पाया|

तीसरी बार, जब उसे सरल या कठिन का चुनाव करना था और उसने सरल को चुना |

चौथी बार, जब उसने एक पाप किया और यह सोचकर संतोष कर लिया की अन्य भी यह पाप करते हैं|

पाँचवी बार, जबकि कमज़ोरी के प्रति उसने धैर्य दिखाया और अपनी इस धैर्यशीलता को शक्ति का प्रतीक बताया|

छठी बार, जबकि उसने एक चेहरे की बदसूरती पर घृणा एक नज़र डाली और यह न समझा की यह उसी का एक रूप है|

और सांतवी बार तब, जबकि उसने प्रशंसा का एक गीत गाया और इसे अपना 'गुण' व्यक्त किया|