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दिसंबर 20, 2011

ओ कुहरे मेरे भाई !


ओ कुहरे मेरे भाई ! 
सफ़ेद साँस अभी तक किसी आकार में नहीं ढली है
मैं तुम्हारे पास वापस आ गया हूँ, 
एक सफ़ेद साँस और बेआवाज़ होकर
एक लफ्ज़ भी अभी तक नहीं बोला,

ओ कुहरे मेरे पंखों वाले भाई ! अब हम एक साथ है 
और साथ ही रहेंगे, जीवन के अगले दिन तक 
कौन सी सुबह तुम्हे ओस कि बूँद बनाकर 
बगीचे में लिटाएगी और मुझे 
बच्चा बनाकर एक औरत के सीने पर
और हम एक दूसरे को याद रखेंगे,

ओ कुहरे मेरे भाई ! मैं वापस आ गया हूँ 
एक दिल अपनी गहराईओं में सुनता हुआ 
जैसा कि तुम्हारा दिल एक धड़कती हुई आकांक्षा 
और तुम्हारी उद्देश्यहीन आकांक्षा कि तरह 
एक सोच जो अभी तक नहीं टिकी जैसे कि तुम्हारी,

ओ कुहरे मेरे भाई ! 
मेरे हाथ अभी भी उन चीजों को पकडे हुए हैं 
जो कि तुमने मुझे बिखेरने के लिए दी थीं  
और मेरे होंठ सिले हुए हैं उस गीत पर
जो कि तुमने मुझे गाने के लिए दिया था
पर मैं तुम्हारे लिए कोई फल नहीं लाया और न तुम्हारे
पास मैं कोई आवाज़ लेकर आया हूँ 
क्योंकि मेरे हाथ अंधे और मेरे होंठ खामोश हैं, 

ओ कुहरे मेरे भाई ! 
मैंने इस दुनिया से बहुत ज़्यादा प्यार किया
और दुनिया ने मुझे वैसा ही प्यार दिया 
क्योंकि मेरी सारी मुस्कुराहटें दुनिया के होंठो पर थी 
और उसके सारे आँसू मेरी आँखों में 
फिर भी हमारे बीच एक ख़ामोशी कि खाई थी
जो कि दुनिया नहीं भरना चाहती थी 
और जिसे मैं पार नहीं कर सकता था,

ओ कुहरे मेरे भाई ! मेरे अमर भाई कुहरे 
मैंने पुराने गीत अपने बच्चों को सुनाये 
उन्होंने सुने और उनके चेहरे पर आश्चर्य व्याप्त था
पर कल ही वो अचानक ये गीत भूल जायेंगे
मैं नहीं जनता था कि किसके 
पास तक हवा गीत नहीं ले जाएगी
हालाँकि वो गीत मेरा अपना नहीं था
लेकिन वो मेरे दिल में समां गया 
और मेरे होंठो पर कुछ देर तक खेलता रहा,

ओ कुहरे मेरे भाई !
हालाँकि ये सब गुज़र गया, मैं शांति में हूँ
मेरे लिए ये काफी था कि उनके 
लिए गाया जाये जो जन्म ले चुके हैं 
और अगर्चे कि यह गाना मेरा अपना नहीं है
लेकिन वह मेरे दिल कि सबसे गहरी ख्वाहिश है,

ओ कुहरे मेरे भाई ! मेरे भाई कुहरे
मैं तुम्हारे साथ अब एक हूँ 
अब मैं खुद "मैं" नहीं रहा
दीवारें गिर चुकी,जंजीरे टूट चुकी 
मैं तुम्हारे पास आने के लिए
ऊपर उठ रहा हूँ एक कुहरा बनकर
और हम साथ-साथ सागर के ऊपर तैरेंगे
जीवन के दूसरे दिन तक 
जबकि सुबह तुम्हे ओस कि बूँद बनाकर 
बगीचे में लिटाएगी और मुझे 
बच्चा बनाकर एक औरत के सीने पर

दिसंबर 06, 2011

दोस्त


तुम्हारा दोस्त तुम्हारी ज़रूरतों का जवाब है, वह तुम्हारी फसल है , जिसे तुम बड़े प्रेम से बोते हो और बड़े प्रेम से काटते हो | वह तुम्हारे भोजन का थाल है और तुम्हारा अपना घर है | क्योंकि तुम अपनी भूख लेकर उसके पास पहुँचते हो और अपने आराम के लिए उसी को तलाशते रहे हो |


जहाँ दोस्ती है, वहाँ शब्दों का इस्तेमाल किये बिना ही सारे विचार, सारी कामनायें और सारी आशायें जन्म लेती हैं और ख़ुशी-ख़ुशी बाँट ली जाती हैं | एक दुसरे की वाह-वाही किये बिना ही|

अगर कभी अपने दोस्त से बिछड़ना पड़े तो शोक मत करो क्योंकि उसकी जिन बातों को तुम सबसे ज्यादा पसंद करते हो, वो उसके न होने पर स्पष्ट हो जाएँगी | स्नेह को बढाने के अलावा अपनी दोस्ती का और कोई उद्देश्य मत होने दो |

वह दोस्त किस काम का हुआ ? जिसे तुम सिर्फ वक़्त काटने के लिए तलाश करो, उसे हमेशा अपने पूरे वक़्त को जीने के लिए तलाश करो | क्योंकि दोस्ती तुम्हारी ज़रुरत को पूरा करने के लिए है, तुम्हारे खालीपन को भरने के लिए नहीं | 

दोस्ती की मिठास में अपनी मुस्कुराहटों को बांटो और अपनी खुशियों को शामिल होने दो | क्योंकि इन्ही छोटी-छोटी खुशियों में दिल को अपनी सुबह मिल जाती है और वह ताजगी महसूस करने लगता है |
                                                                    
                                                                           - खलील जिब्रान

नवंबर 21, 2011

दर्द


दर्द उस खोल का टूटना है, जो तुम्हारी समझ को घेरे रहता है | अपने दर्द के काफी अंश को तुम खुद चुनते हो |
                                           
  - खलील जिब्रान

नवंबर 14, 2011

भला और बुरा


बुराई उस यातना के सिवा क्या है ? जो सज्जनता की अपनी ही भूख और अपनी ही प्यास उसे दिया करती है |

तुम भले हो यदि अपनी आत्मा के साथ एकाकार हो जाओ |
तुम भले हो यदि तुम आत्मदान करने की कोशिश करते हो |
तुम भले हो यदि अपने वचनों में पूरी तरह जागरूक हो |
तुम भले हो यदि तुम अपने लक्ष्य की ओर द्रढ़ता और साहस के साथ क़दम बड़ा रहे हो |
                                                           
                                                                            -  खलील जिब्रान

अक्तूबर 29, 2011

सुख और दुःख


तुम्हारा सुख तुम्हारे दुःख का ही बेनकाब चेहरा है | दुःख जितनी गहराई तक तुम्हारे मन को तराशेगा, उतना ही सुख उसमे समा सकेगा | खुशियों के पलों में अपने दिल कि गहराइयों में झाँकों और तुम पाओगे कि जिस कारण ने तुम्हे दुःख पहुँचाया था, वही इस वक़्त तुम्हे सुख पहुँचा रहा है और शोक के पलों में फिर से अपने दिल में झाँकों और तुम पाओगे कि वास्तव में तुम उसी चीज़ के लिए रो रहे हो, जो कभी तुम्हारी ख़ुशी कि वजह रही है |

                                                                     - खलील जिब्रान

अक्तूबर 14, 2011

संतान


तुम्हारी संतान तुम्हारे माध्यम से उत्पन्न हुई है, परन्तु तुमसे नहीं | तुम उसे अपना प्यार तो दे सकते हो, किन्तु विचार नहीं क्योंकि ये अपने ही विचार रखते हैं | तुम उनके समान बनने कि कोशिश तो कर सकते हो परन्तु उन्हें अपने समान बनाने कि लालसा मत रखो |
                                                                   
                                                                                 -खलील जिब्रान

         

अक्तूबर 01, 2011

आत्मज्ञान


तुम्हारे हृदय का मौन तुम्हारे दिनों और रातों का ज्ञाता है | जिसे तुमने हमेशा से अपने विचारों में जाना है| उसे तुम शब्दों में भी जानना चाहते हो, आत्मज्ञान एक समुद्र है, असीम और आगाध...........
                                                      - खलील जिब्रान

सितंबर 12, 2011

दान


आत्मदान करना ही वास्तविक दान है| 
जो लोग खुश होकर दान करते हैं, तो यही ख़ुशी उनका पुरस्कार है|
 ऐसे ही दाता की वजह से परमात्मा का सन्देश सुनाई देता है |
 संसार में ऐसा क्या है ?.........जिसे तुम अपने लिए बचाकर रखना चाहते हो |
                                                                     
                                                              - खलील जिब्रान 


अगस्त 29, 2011

सुख


सुख एक मुक्तिगान है - किन्तु मुक्ति नहीं | 
वह हमारी कामनाओं के फूल हैं, किन्तु फल नहीं |
वह पिंजरे से छूटे पंछी की उड़ान है, किन्तु उड़ान द्वारा पार किया गया आकाश नहीं |

                                                              - खलील जिब्रान 


अगस्त 11, 2011

मुक्ति


तुम्हारे दिनों पर किसी चिंता का भार न हो और तुम्हारी रातों पर किसी आभाव या पीड़ा का | तब तुम निश्चय ही मुक्त हो जाओगे |परन्तु तुम्हारी वास्तविक मुक्ति वही कहलाएगी, जब यह बाधाएँ तुम्हारे जीवन को घेरें रहें और इसके बावजूद तुम इनसे ऊपर उठ जाओ......नग्न और निर्बाध |
                                                                   - खलील जिब्रान

जुलाई 27, 2011

शिक्षा

अपने शिष्यों के मध्य चलता हुआ गुरु उन्हें अपनी बुद्धि नहीं दे सकता, वह सिर्फ अपनी आस्था और अपना प्रेम बाँट सकता है वह तुमसे अपनी बुद्धि के भवन में प्रवेश करने को नहीं कहेगा, वह तुम्हे तुम्हारे अपने ही मस्तिष्क कि दहलीज़ पर ले जाएगा|
                                                                                   
                                                                        - खलील जिब्रान

जुलाई 05, 2011

धर्म


क्या हमारे समस्त कर्म और हमारी समस्त धारणायें ही धर्म नहीं हैं |
कौन है ? जो जीवन के हर एक पल को अपने सामने बिछाकर कह सकता है, " इतना ईश्वर का हिस्सा और इतना मेरी आत्मा के हिस्से में है, और इतना मेरे शरीर के हिस्से में |
तुम्हारा दैनिक जीवन ही तुम्हारा मंदिर और धर्म है | जब भी इसमें प्रवेश करो अपना सब कुछ साथ लेकर जाओ |
                                                                     - खलील जिब्रान

जून 14, 2011

बादल



यदि तुम एक बादल पर बैठ जाओ और नीचे देखो तो तुम पाओगे कि दो देशों को विभाजित करने वाली किसी सीमा का अस्तित्व ही नहीं है, और न ही एक खेत को दूसरे खेत से अलग करने का निर्देशक पत्थर ही है |

दयनीय तो यह है कि तुम बादल पर बैठ ही नहीं सकते |

                                                                      -खलील जिब्रान

मई 25, 2011

देवरूप



"यदि तुम अहंभाव, जाति और देश के बंधन से एक हाथ भी ऊपर उठ सको, तब तुम अपने को देवरूप में पाओगे|"
                                                             - खलील जिब्रान   


मई 03, 2011

तुम कौन हो


मैं सिर्फ एक ही बार निरुत्तर हुआ हूँ | वह भी तब, जब एक मानव ने मुझसे पूछा ' तुम कौन हो ?'
                                                                   - खलील जिब्रान

अप्रैल 18, 2011

गहराई


जब प्रभु ने मुझे एक पाषाण-खण्ड की तरह संसार की इस अदभुत झील में फेंका, तो मैंने असंख्य वृत्ताकार लहरों के द्वारा इसकी शांत सतह को विक्षुब्ध कर दिया | किन्तु ज्यों-ज्यों मैं गहराई में बैठता गया, मैं शांत होता गया |

                                                         - खलील जिब्रान


मार्च 28, 2011

विशाल परिधि


"अभी कल तक मैं यह समझता था की मेरी आत्मा जीवन की विशाल परिधि में स्पंदन रहित एक छोटा सा कांपता हुआ अंशमात्र है|

और आज मैंने जाना की विशाल परिधि मैं ही हूँ, और इन स्पंदनमय अंशों से युक्त यह समस्त जीवन मेरे ही अन्दर गतिशील है |"
                                                                    - खलील जिब्रान

मार्च 04, 2011

पद-चिह्न


मैं सागर के इन तटों पर पानी और रेत के बिच सदा से घूम रहा हूँ | आने वाला ज्वार मेरे पद-चिह्नों  को मिटा देगा और बहने वाली हवा इस झाग को उड़ा ले जाएगी| 

किन्तु सागर और तट सदा विद्यमान रहेंगे |

                                                                         - खलील जिब्रान

फ़रवरी 13, 2011

प्रेम का वास्तविक अर्थ


प्रिय ब्लॉगर साथियों,

ये पोस्ट पहले भी इस ब्लॉग पर एक बार प्रकाशित हो चुकी है पर आज प्यार के इस मुबारक मौके पर प्यार से सराबोर और मुहब्बत के सच्चे मानी बयान करती ये पोस्ट दुबारा आप सबकी नज़र करता हूँ.........अक्सर लोग पूछते हैं कि सच्चा प्यार क्या होता है? मेरी तरफ से कोशिश है कि मैं लोगो को प्रेम का सच्चा अर्थ बताने कि कोशिश कर सकूँ|तो पेश है ये पोस्ट महान लेखक खलील जिब्रान कि कलम से और साथ में मेरी तरफ से मेरे जज़्बात ........उम्मीद है शायद प्रेम का वास्तविक अर्थ समझ में आये|
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प्रेम जब भी तुम्हे पुकारे उसके पीछे चल पड़ो, हालाँकि उसके रास्ते बहुत मुश्किल और काँटो भरे हैं| जब प्रेम तुमसे कुछ कहे तो उस पर यकीन करो, हो सकता है उसकी बातें तुम्हारे सपनो को चूर-चूर भी कर दे, जैसे बर्फीली हवा सारे बगीचे को उजाड़ देती है |

प्रेम एक ओर अगर तुम्हे राजमुकुट पहना सकता है, तो दूसरी ओर सलीब पर भी चढ़ा सकता है अगर वो तुम्हारे विस्तार के लिए है तो तुम्हे तराशने के लिए भी है| प्रेम जिस तरह तुम्हारी ऊँचाइयों पर चढ़कर धूप में लहराती हुई तुम्हारी कोमल टहनियों को सहलाता है, वहीं दूसरी तरफ तुम्हारी जड़ो में उतरकर ज़मीन से जुड़े तुम्हारे अस्तित्व को झिंझोड़कर ढीला कर देता है|

प्रेम तुम्हारे साथ इतना कुछ करेगा कि तुम अपने दिल सारे राज़ों को जान जाओ|पर अगर तुम्हे इन बातों से डर लगता है और तुम केवल प्रेम कि शान्ति और प्रेम के आनन्द को पाना चाहते हो तो तुम प्रेम के इस बगीचे के बाहर निकल जाओ और चले जाओ किसी ऐसी जगह पर जहाँ तुम हँसो भी तो तुम्हारी सम्पूर्ण खिलखिलाहट न दिखे और अगर रोओ तो तुम्हारे आँसू न बह सकें|

" प्रेम केवल खुद को ही देता है और खुद से ही पाता है| प्रेम किसी पर अधिकार नहीं जमाता और न ही किसी के अधिकार को स्वीकार करता है| प्रेम के लिए तो प्रेम का होना ही बहुत है|" कभी ये मत सोचो कि तुम प्रेम को रास्ता दिखा रहे हो या दिखा सकते हो, क्योंकि अगर तुम सच्चे हो तो प्रेम खुद तुम्हे रास्ता दिखायेगा|

प्रेम के अलावा प्रेम कि और कोई इच्छा नहीं होती पर अगर तुम प्रेम करो और तुमसे इच्छा किये बिना न रहा जाए तो यही इच्छा करो कि तुम पिघल जाओ प्रेम के रस में और प्रेम के इस पवित्र झरने में बहने लगो|प्रेम के रस में डुबो तो ऐसे कि जब सुबह तुम जागो तो प्रेम का एक दिन और पा जाने का एहसान मानो,और फिर रात में जब तुम सोने जाओ तो दिल में अपने प्रियतम के लिए प्रार्थना हो और होंठो पर उसकी ख़ुशी के लिए गीत|

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मेरे जज़्बात-

यही प्रेम का वास्तविक अर्थ है, प्रेम तभी पूरा होता जब वो सच पर आधारित होता है| प्रेम में निंदा, द्वेष, इर्ष्या, झूठ, फरेब के लिए कोई जगह नहीं और सच्चे अर्थो में जब ये सब मिट जाते हैं तब प्रेम का शिलान्यास होता है, प्रेम विश्वास पर टिकता है और विश्वास तभी होता है जब ये भावनाये दिल से मिट जाती है| 

                     

जनवरी 31, 2011

अपराध और दंड


जब तुम्हारी आत्मा पवन पर सवार होकर भ्रमण करने गयी होती है और जब तुम अकेले और असरंक्षित रह जाते हो, तभी तुम दूसरों के प्रति फलतः अपने ही प्रति अपराध करते हो|

कोई पवित्र और पुण्यात्मा भी उस उच्चतम से ऊँचा नहीं उठ सकता, जो तुममे हरेक में मौजूद है| उसी प्रकार कोई दुष्ट और दुर्बल उस निकृष्टतम से नीचे नहीं गिर सकता, जो तुममे मौजूद है| जैसे एक पत्ती भी सम्पूर्ण पेड़ की खामोश जानकारी के बिना पीली नहीं पड़ती, वैसे ही अपराधी तुम सबकी छिपी हुई इच्छा के बिना अपराध नहीं कर सकता|

तुम उसे क्या सज़ा दोगे, जो शरीर से तो ईमानदार है, लेकिन मन से चोर है?

और तुम उसे क्या दंड दोगे, जो देह की हत्या करता है, लेकिन जिस की खुद की आत्मा का हनन किया गया है?

और तुम उन्हें कैसे सज़ा दोगे, जिनका पश्च्याताप पहले ही उनके दुष्कृत्यों से अधिक है?
                                                                              
                                                                  - खलील जिब्रान

जनवरी 09, 2011

क्रय - विक्रय


धरती अपनी उपज तुम्हारे हवाले करती है| और अगर तुम अपनी अंजलि भरना ही जान लो, तो तुम्हे कोई आभाव नहीं रहेगा| पृथ्वी के उपहारों के लेन - देन में ही तुमको भरपूर प्राप्ति हो जाएगी और तुम्हे संतोष होगा|

लेकिन अगर यह लेन - देन प्रेम, उदार और न्यायपूर्ण न होगा तो वह कुछ लोगों को लोभ की ओर ले जायेगा और कुछ लोगों को भूखा रहने की ओर|
                                                                           - खलील जिब्रान