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अप्रैल 18, 2011

गहराई


जब प्रभु ने मुझे एक पाषाण-खण्ड की तरह संसार की इस अदभुत झील में फेंका, तो मैंने असंख्य वृत्ताकार लहरों के द्वारा इसकी शांत सतह को विक्षुब्ध कर दिया | किन्तु ज्यों-ज्यों मैं गहराई में बैठता गया, मैं शांत होता गया |

                                                         - खलील जिब्रान


6 टिप्‍पणियां:

  1. वाह,वाह,वाह!
    बहुत गहन भाव हैं !
    आभार इमरान जी!

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  2. बहुत सुन्दर पोस्ट

    भगवान हनुमान जयंती पर आपको हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  3. संसार में आकर हर नया जीव कुछ न कुछ हलचल अवश्य पैदा करता है जिब्रान जैसे कुछ ही भाग्यशाली अपने भीतर उतर कर न केवल शांति का अनुभव स्वयं करते हैं बल्कि अन्यों को भी उसकी झलक से रूबरू करा जाते हैं !

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  4. जीवन में जितनी भी हलचल है वह सतह पर ही है...गहन भीतर बस शांति ही शांति है...यह इंसान इंसान पर निर्भर करता है कि वह उसे महसूस कब करता हैं...! !

    और फिर शांति....शांति.....शांति.....!!

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  5. आप की बहुत अच्छी प्रस्तुति. के लिए आपका बहुत बहुत आभार आपको ......... अनेकानेक शुभकामनायें.
    मेरे ब्लॉग पर आने एवं अपना बहुमूल्य कमेन्ट देने के लिए धन्यवाद , ऐसे ही आशीर्वाद देते रहें
    दिनेश पारीक
    http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
    http://vangaydinesh.blogspot.com/2011/04/blog-post_26.html

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  6. आप की बहुत अच्छी प्रस्तुति. के लिए आपका बहुत बहुत आभार आपको ......... अनेकानेक शुभकामनायें.
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    दिनेश पारीक
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जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...