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मार्च 28, 2011

विशाल परिधि


"अभी कल तक मैं यह समझता था की मेरी आत्मा जीवन की विशाल परिधि में स्पंदन रहित एक छोटा सा कांपता हुआ अंशमात्र है|

और आज मैंने जाना की विशाल परिधि मैं ही हूँ, और इन स्पंदनमय अंशों से युक्त यह समस्त जीवन मेरे ही अन्दर गतिशील है |"
                                                                    - खलील जिब्रान

मार्च 04, 2011

पद-चिह्न


मैं सागर के इन तटों पर पानी और रेत के बिच सदा से घूम रहा हूँ | आने वाला ज्वार मेरे पद-चिह्नों  को मिटा देगा और बहने वाली हवा इस झाग को उड़ा ले जाएगी| 

किन्तु सागर और तट सदा विद्यमान रहेंगे |

                                                                         - खलील जिब्रान