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अगस्त 29, 2011

सुख


सुख एक मुक्तिगान है - किन्तु मुक्ति नहीं | 
वह हमारी कामनाओं के फूल हैं, किन्तु फल नहीं |
वह पिंजरे से छूटे पंछी की उड़ान है, किन्तु उड़ान द्वारा पार किया गया आकाश नहीं |

                                                              - खलील जिब्रान 


6 टिप्‍पणियां:

  1. bahut khob kya baat kahi aapne .bahut badhiya gagar me sagar bhar diya aapne....

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  2. किंतु उड़ान द्वारा पाया गया आकाश नहीं .... बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  3. जिब्रान जैसे संत हमें कहीं रुकने नहीं देना चाहते... सुख पर भी यात्रा खत्म नहीं होती क्योंकि हर सुख एक न एक दिन दुःख में बदलने ही वाला है... मुक्ति तो दुखके साथ साथ सुख के भी पार है...आभार!

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  4. कितना सही कहा है ...सुख दुःख के बिना अधूरा ही है ...फिर मुक्ति कैसे हुआ ...
    abhar is gyanvardhan ke liye...

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जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...