एक गाँव में एक स्त्री और उसकी पुत्री रहती थी। इन्हें नींद में चलने की बीमारी थी। एक रात जब सारे संसार में निस्तब्धता छाई हुई थी, ये माँ-बेटी घूमती-घामती अपनी कोहरे की चादर से ढकी वाटिका में जा पहुँची और वहाँ परस्पर मिलीं ।
माँ ने बेटी से कहा " हाँ-हाँ , मुझे पता चल गया, मेरी शत्रु तू है जिसने मेरा यौवन नष्ट कर दिया है । तू ही है जिसने मेरे जीवन खंडहरों पर अपने जीवन भवन का निर्माण किया है । क्या ही अच्छा होता कि मैं पैदा होते ही तेरा गला घोंट देती ।
बेटी ने कहा " ए ! स्वार्थी बुढ़िया, तू मेरे और मेरे स्वतंत्र स्वभाव के बीच एक रोड़े के समान है । कौन मेरे जीवन को तेरे मुरझाये हुए जीवन का प्रतिबिम्ब मानेगा? क्या ही अच्छा हो कि ईश्वर तेरे जीवन का अंत कर दे।"
इसी समय मुर्गे ने बाँग दी और दोनों नींद से जागीं ।
बुढ़िया ने बड़े प्रेम से कहा " कौन, तुम हो प्यारी बेटी !"
पुत्री ने बड़े प्यार से उत्तर दिया "हाँ, मेरी प्यारी अम्मा !"