अनेक बार तुम्हारा अंत: करण संग्राम भूमि बनता है, जहाँ तुम्हारा विवेक और तुम्हारी न्याय-बुद्धि तुम्हारी वासना एवं तृष्णा के विरुद्ध युद्ध करती है।
विवेक एकाकी राज करते हुए मर्यादित करने वाली शक्ति है और बे-लगाम वासना वह ज्वाला है जो स्वयम अपने को जलाकर रख होने तक जलती है।
तुम्हारी आत्मा तुम्हारे विवेक को वासना की ऊँचाई तक उठाए ताकि वह गा सके और तुम्हारी वासना को विवेक से संचालित होने दो ताकि वासना नित्य ही अपने विनाश में से नया जन्म पा सके और अनल पक्षी** के समान भस्म होकर पुन: जीवित हो सके।
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**ग्रीस में किवदंती है की फिनिक्स पक्षी मौत करीब आने पर आग में गिरकर जल जाता है और कुछ क्षण बाद उसकी राख़ में से वैसा-का-वैसा एक पक्षी निकलकर आकाश में उड़ने लगता है।