बड़ी शानो शौकत और वैभव के साथ मिट्टी मिट्टी में से जन्म लेती है । फिर यह मिट्टी बड़े गर्व और अभिमान से मिट्टी के ऊपर चलती फिरती है ।
मिट्टी मिट्टी से राजाओं के लिए राजभवन और धनवानों के लिए ऊँची ऊँची मीनार और सुन्दर सुन्दर भवनों का निर्माण करती है । वह अदभुत पुराण - कथाओं के ताने बाने बुनती है, कठोर नियम-कानून बनाती है और जटिल सिद्धांतों की रचना करती है।
जब यह सब कुछ हो चुकता है तो मिट्टी मिट्टी के श्रम से उकताकर अपने प्रकाश और अँधेरे में से काली-काली भयानक छायाओं, कोमल-कोमल सूक्ष्म कल्पनाओं और मनमोहक मधुर-मधुर सपनो की सृष्टि करती है ।
फिर मिट्टी की नींद हारी थकी मिट्टी की बोझिल पलकों को फुसलाती है । तब मिट्टी गहरी और शांत नींद में संसार की सब वस्तुओं को अपनी पलकों में बंद कर लेती है ।
और मिट्टी मिट्टी को संबोधन करके कहती है, "देख, मैं ही तेरा आदि और मैं ही तेरा अंत हूँ और सदा तेरा आदि और अंत मैं ही रहूँगी - जब तक की सितारों का अंत न हो जाए और चाँद और सूरज जल-बुझकर रख का ढेर न हो जाएँ ।"