मुझसे कहा जाता है, "इहलोक (भौतिक जगत) के भोग या परलोक की शांति में से किसी एक को चुन लो।"
और मैं उनसे कहता हूँ, "मैंने दोनों को ही चुन लिया है - इहलोक के आनंदों और परलोक की शांति को।"
"क्योंकि मैं जानता हूँ की उस विराट कवि ने एक ही कविता लिखी है । वही समझी भी पूर्णतया से जाती है और उसका गान भी पूर्ण रूप में संभव है।"
- ख़लील ज़िब्रान