मुझसे कहा जाता है, "इहलोक (भौतिक जगत) के भोग या परलोक की शांति में से किसी एक को चुन लो।"
और मैं उनसे कहता हूँ, "मैंने दोनों को ही चुन लिया है - इहलोक के आनंदों और परलोक की शांति को।"
"क्योंकि मैं जानता हूँ की उस विराट कवि ने एक ही कविता लिखी है । वही समझी भी पूर्णतया से जाती है और उसका गान भी पूर्ण रूप में संभव है।"
- ख़लील ज़िब्रान
वाह ... बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंकितनी सुंदर बात...उस विराट कवि ने एक ही कविता लिखी है..वह एक ही है..एक से ही अनेक हुए हैं..पूर्ण को स्वीकार करके ही पूर्ण को पाया जा सकता है..सुंदर भाव !
जवाब देंहटाएंक्योंकि मैं जानता हूँ की उस विराट कवि ने एक ही कविता लिखी है । वही समझी भी पूर्णतया से जाती है और उसका गान भी पूर्ण रूप में संभव है।"
जवाब देंहटाएं- ख़लील ज़िब्रान
बहुत सुन्दर..!!
बहुत खुबसुरत लाईन।
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसुरत लाईन।
जवाब देंहटाएंलगता है आप ज़िब्रान के बहुत बड़े फैन हैं!
जवाब देंहटाएंआपका बहुत शुक्रिया आदरणीय अंसारी जी ऐसे महान व्यक्तित्व से रूबरू कराने के लिए।
सादर
Bhai Imran Ji
जवाब देंहटाएंKhleel Zibran ji ne Sahitya likhne ka ya koi bhi srijan karne ka tareeka bahut mukhtsar tareeke se samjaha diya hai.