एक दिन सुन्दरता और कुरूपता की समुद्र के किनारे मुलाक़ात हुई । दोनों ने एक दूसरे से कहा "आओ समुद्र में स्नान करें"
दोनों ही अपने -अपने कपडे उतार के समुद्र में तैरने लगीं ।
थोड़ी देर में कुरूपता किनारे पर आई और सुन्दरता के कपड़े अपने बदन पर सजाकर चलती बनी । जब सुन्दरता समुद्र से बहार आई तो उसने देखा कि उसके कपड़े गायब थे । नग्न रहने में उसे शर्म महसूस हुई तो उसने हारकर कुरूपता के कपड़े पहन लिए और अपनी राह ली ।
आज तक संसार के लोग कुरूपता को सुन्दरता और सुन्दरता को कुरूपता समझने कि भूल कर रहे हैं ।
फिर भी कुछ लोग ऐसे हैं जो सुन्दरता के चेहरे से परिचित हैं और उसके बदले हुए कपड़ों में भी उसे पहचान लेते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो कुरूपता को पहचानते हैं और उनकी आँखों से उसका सच्चा स्वरुप छुपा नहीं रह पाता ।
- खलील जिब्रान
आपकी यह उत्कृष्ट रचना कल दिनांक 30 जून 2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है , कृपया पधारें व औरों को भी पढ़े...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया शालिनी जी हमारे ब्लॉग की पोस्ट को यहाँ शामिल करने का।
हटाएंबहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंसही बात है ।इसिलये आदमी जैसा दीखता हे वैसा होता नहीं है।
जवाब देंहटाएंसही बात है ।इसिलये आदमी जैसा दीखता हे वैसा होता नहीं है।
जवाब देंहटाएंसुंदर संदेश।
जवाब देंहटाएंachhi kahaani seekh dene wali
जवाब देंहटाएंजो पहचान ले वह मुक्त रहता है नहीं तो फंस जाता है एक दुश्चक्र में मानव..सुंदर बोध कथा..
जवाब देंहटाएंआप सभी लोगों का बहुत बहुत शुक्रिया ।
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक बात कही..
जवाब देंहटाएंसुंदर संदेश।बहुत सटीक बात कही..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है आपने,
जवाब देंहटाएंखलील जिब्रान की कहानियां सच में बहुत अलग सी होती है , शुक्रिया शेयर करने के लिए !
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आशा करता हूँ कि जल्दी ही आपसे फोरम पर मुलाकात होगी ! :)
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