Click here for Myspace Layouts

नवंबर 02, 2012

पागल


एक पागलखाने के बगीचे में एक युवक से मेरी भेंट हो गई । उसका चेहरा पीला, सुन्दर और विस्मय की भावनाओं से भरा हुआ था।

मैं उसके बगल में ही बेंच पर जा बैठा और उससे पूछा, " अरे, तुम यहाँ कैसे आए ?"

उसने आश्चर्य से मेरी और देखकर कहा " आपका प्रश्न है तो अजीब, फिर भी जवाब देता हूँ। मेरे पिता और चाचा मुझे अपनी तरह बनाना चाहते हैं, मेरी माँ मुझे मेरे नाना की प्रतिमूर्ति देखना चाहती हैं, मेरी बहन मेरे सामने अपने नाविक पति का आदर्श उपस्थित करती है और मेरा भाई मुझे अपने समान अच्छा खिलाडी बनाने की बात सोचता है।"

" मेरे शिक्षक - दर्शन, संगीत और तर्कशास्त्र के अध्यापक - सब के सब इस बात पर कटिबद्ध हैं की वे मुझमें दर्पण की तरह अपना प्रतिबिम्ब देखें ।" इसलिए मुझे यहाँ आना पड़ा। यहाँ मैं अधिक स्वस्थता का अनुभव करता हूँ कम-से-कम अपना व्यक्तित्व तो है।"

तभी वह अचानक मेरी ओर घूमकर बोला "लेकिन यह तो बताइए, आप यहाँ कैसे आए ? क्या आपको भी आपकी शिक्षा और सदबुद्धि ने यहाँ आने के लिए प्रेरित किया है?

मैंने उत्तर दिया " नहीं, मैं तो एक दर्शक के रूप में आया हूँ।"

और उसने कहा " अच्छा, समझा ! आप इस चारदीवारी के बाहर के विस्तृत पागलखाने के निवासी हैं।"

- खलील जिब्रान 

अक्तूबर 09, 2012

स्वप्नचर



एक गाँव में एक स्त्री और उसकी पुत्री रहती थी। इन्हें नींद में चलने की बीमारी थी। एक रात जब सारे संसार में निस्तब्धता छाई हुई थी, ये माँ-बेटी घूमती-घामती अपनी कोहरे की चादर से ढकी वाटिका में जा पहुँची और वहाँ परस्पर मिलीं ।

माँ ने बेटी से कहा " हाँ-हाँ , मुझे पता चल गया, मेरी शत्रु तू है जिसने मेरा यौवन नष्ट कर दिया है । तू ही है जिसने मेरे जीवन खंडहरों पर अपने जीवन भवन का निर्माण किया है । क्या ही अच्छा होता कि मैं पैदा होते ही तेरा गला घोंट देती ।

बेटी ने कहा " ए ! स्वार्थी बुढ़िया, तू मेरे और मेरे स्वतंत्र स्वभाव के बीच एक रोड़े के समान है । कौन मेरे जीवन को तेरे मुरझाये हुए जीवन का प्रतिबिम्ब मानेगा? क्या ही अच्छा हो कि ईश्वर तेरे जीवन का अंत कर दे।"

इसी समय मुर्गे ने बाँग दी और दोनों नींद से जागीं ।

बुढ़िया ने बड़े प्रेम से कहा " कौन, तुम हो प्यारी बेटी !"
पुत्री ने बड़े प्यार से उत्तर दिया "हाँ, मेरी प्यारी अम्मा !"    


सितंबर 15, 2012

लोमड़ी


एक लोमड़ी ने सुबह के वक़्त अपनी छाया पर दृष्टि डाली और कहा, "मुझे आज नाश्ते के लिए एक ऊँट मिलना ही चाहिए।"

उसने सुबह का सारा वक़्त ऊँट की तलाश में घूमते हुए गुज़ार दिया, लेकिन जब दोपहर को उसने दूसरी बार अपनी छाया देखी तो कहा, " मेरे लिए तो एक चूहा ही काफी होगा।"

- खलील जिब्रान 

अगस्त 24, 2012

विवेक और वासना



अनेक बार तुम्हारा अंत: करण संग्राम भूमि बनता है, जहाँ तुम्हारा विवेक और तुम्हारी न्याय-बुद्धि तुम्हारी वासना एवं तृष्णा के विरुद्ध युद्ध करती है।

विवेक एकाकी राज करते हुए मर्यादित करने वाली शक्ति है और बे-लगाम वासना वह ज्वाला है जो स्वयम अपने को जलाकर रख होने तक जलती है। 

तुम्हारी आत्मा तुम्हारे विवेक को वासना की ऊँचाई तक उठाए ताकि वह गा सके और तुम्हारी वासना को विवेक से संचालित होने दो ताकि वासना नित्य  ही अपने विनाश में से नया जन्म पा सके और अनल पक्षी** के समान भस्म होकर पुन: जीवित हो सके।

------------------------------------------------------------

**ग्रीस में किवदंती है की फिनिक्स पक्षी मौत करीब आने पर आग में गिरकर जल जाता है और कुछ क्षण बाद उसकी राख़ में से वैसा-का-वैसा एक पक्षी निकलकर आकाश में उड़ने लगता है।


जुलाई 23, 2012

रास्ता


मेरा घर मुझसे कहता है "मुझे मत छोड़ना क्योंकि तुम्हारा अतीत यहीं गुज़रा है"

और रास्ता कहता है " जाओ, मेरा अनुसरण करो क्योंकि मैं तुम्हारा भविष्य हूँ"

और मैं घर और रास्ते दोनों से कहता हूँ, " न कोई मेरा अतीत है, न कोई मेरा भविष्य है । अगर मैं यहाँ रूक भी जाऊँ तो मेरे रुकने में भी गति है और अगर मैं जाता हूँ तो मेरे चलने में भी स्थिरता है । केवल प्रेम और मृत्यु ही प्रसंग को बदल सकते हैं ।"

- खलील जिब्रान 

जून 30, 2012

दो विद्वान


एक प्राचीन नगर में किसी समय में दो विद्वान रहते थे । उनके विचारों में बड़ी भिन्नता थी । एक - दूसरे की विद्या की हँसी उड़ाते थे, क्योंकि उनमे से एक आस्तिक था और दूसरा नास्तिक।

एक दिन दोनों बाज़ार में मिले और अपने अनुयायियों की उपस्थिति में ईश्वर के अस्तित्व पर बहस करने लगे । घंटों बहस करने के बाद एक - दूसरे से अलग हुए।

उसी शाम को नास्तिक गिरजे में गया और वेदी के सामने सर झुकाकर अपने पिछले पापों के लिए क्षमा माँगने लगा । ठीक उसी समय दूसरे विद्वान ने भी, जो ईश्वर की सत्ता में विश्वास करता था, अपनी पुस्तकें जला डालीं क्योंकि अब वह नास्तिक बन गया था ।

- खलील जिब्रान 


जून 14, 2012

नई ख़ुशी


कल रात मैंने एक नई ख़ुशी का अविष्कार किया और जब मैं पहले-पहल उसका उपभोग कर रहा था तब एक देव और एक शैतान मेरे घर की ओर झपटते हुए आए । वे मेरे दरवाज़े पर एक-दूसरे से मिले और मेरी नई रचना के सम्बन्ध में परस्पर झगड़ने लगे ।

एक कहता था,    "यह पाप है।"
दूसरा कहता था, "यह पुण्य है।"

- खलील जिब्रान 

मई 25, 2012

प्रार्थना


तुम अपने दुःख और आभाव के दिनों में प्रार्थना करते हो ; यदि तुम अपने उल्लास की पूर्णता और समृद्धि के दिनों में भी प्रार्थना करो तो कितना अच्छा हो ।

जब तुम प्रार्थना करते हो, तब तुम वायुमंडल में उन लोगों के से मिलने के लिए ऊपर उठते हो, जो उन्ही क्षणों में प्रार्थना कर रहे होते हैं और जिनसे तुम सिवाय प्रार्थना के समय कभी नहीं मिल सकते।

याचना के उद्देश्य के अतिरिक्त और किसी उद्देश्य के लिए तुम प्रार्थना करो तो तुम्हे कुछ न मिलेगा और यदि तुम दीन बनने की भावना से भी प्रार्थना करते हो, तब भी तुम्हारा उद्धार न होगा ।

ईश्वर तुम्हारे शब्दों को तब तक नहीं सुनता, जब तक कि वह स्वयं ही उन शब्दों को तुम्हारे होठों द्वारा नहीं बोलता ।

प्रार्थना हो तो ऐसे कि " हम में ये तेरी ही कामना है जो कामना करती है "

" हम तुझसे किसी भी चीज़ कि याचना नहीं कर सकते, क्योंकि तू हमारे अभावों को उनके जन्म लेने से पूर्व ही जानता है "

" तू ही हमारी आवश्यकता है, और हमे अपने आपको अधिक से अधिक देकर भी तू हमे सब कुछ दे देता है "

- खलील जिब्रान 

अप्रैल 25, 2012

मिट्टी



बड़ी शानो शौकत और वैभव के साथ मिट्टी मिट्टी में से जन्म लेती है । फिर यह मिट्टी बड़े गर्व और अभिमान से मिट्टी के ऊपर चलती फिरती है ।

मिट्टी मिट्टी से राजाओं के लिए राजभवन और धनवानों के लिए ऊँची ऊँची मीनार और सुन्दर सुन्दर भवनों का निर्माण करती है । वह अदभुत पुराण - कथाओं के ताने बाने बुनती है, कठोर नियम-कानून बनाती है और जटिल सिद्धांतों की रचना करती है।

जब यह सब कुछ हो चुकता है तो मिट्टी मिट्टी के श्रम से उकताकर अपने प्रकाश और अँधेरे में से काली-काली भयानक छायाओं, कोमल-कोमल सूक्ष्म कल्पनाओं और मनमोहक मधुर-मधुर सपनो की सृष्टि करती है ।

फिर मिट्टी की नींद हारी थकी मिट्टी की बोझिल पलकों को फुसलाती है । तब मिट्टी गहरी और शांत नींद में संसार की सब वस्तुओं को अपनी पलकों में बंद कर लेती है ।

और मिट्टी मिट्टी को संबोधन करके कहती है, "देख, मैं ही तेरा आदि और मैं ही तेरा अंत हूँ और सदा तेरा आदि और अंत मैं ही रहूँगी - जब तक की सितारों का अंत न हो जाए और चाँद और सूरज जल-बुझकर रख का ढेर न हो जाएँ ।" 

मार्च 15, 2012

कीमती


वे मुझे पागल समझते हैं, क्योंकि मैं अपने कीमती दिनों को चंद सोने के टुकड़ों के लिए नहीं बेचना चाहता ।और मैं उन्हें पागल समझता हूँ की उन्होंने समय को भी सोने से खरीदना चाहा।

- खलील जिब्रान 



फ़रवरी 24, 2012

पूर्णिमा का चाँद




पूर्णिमा का चाँद अपनी सम्पूर्ण आभा लेकर नगर पर उदित हुआ और सभी कुत्ते चाँद की और देखकर भौंकने लगे ।

केवल एक कुत्ता, जो चुप था, अपनी गंभीर वाणी में बोला "व्यर्थ में शांति को जगाकर उसकी निद्रा भंग न करो। तुम्हारे भूंकने से चाँद ज़मीन पर तो आने से रहा ।"

इस पर सब कुत्तों ने भौंकना बंद कर दिया और वहाँ सन्नाटा छा गया ; लेकिन वही उपदेशक कुत्ता शांति बनाये रखने के लिए सारी रात भौंकता रहा ।  

- खलील जिब्रान 


फ़रवरी 09, 2012

खलील जिब्रान - एक परिचय

संसार के श्रेष्ठ चिंतक महाकवि के रूप में विश्व के हर कोने में ख्याति प्राप्त करने वाले, देश-विदेश भ्रमण करने वाले खलील जिब्रान अरबी, अंगरेजी फारसी के ज्ञाता, दार्शनिक और चित्रकार भी थे। उन्हें अपने चिंतन के कारण समकालीन पादरियों और अधिकारी वर्ग का कोपभाजन होने से जाति से बहिष्कृत करके देश निकाला तक दे दिया गया था। 


खलील जिब्रान 6 जनवरी 1883 को लेबनान के 'बथरी' नगर में एक संपन्न परिवार में पैदा हुए। 12 वर्ष की आयु में ही माता-पिता के साथ बेल्जियम, फ्रांस, अमेरिका आदि देशों में भ्रमण करते हुए 1912 में अमेरिका के न्यूयॉर्क में स्थायी रूप से रहने लगे थे।


वे अपने विचार जो उच्च कोटि के सुभाषित या कहावत रूप में होते थे, उन्हें कागज के टुकड़ों, थिएटर के कार्यक्रम के कागजों, सिगरेट की डिब्बियों के गत्तों तथा फटे हुए लिफाफों पर लिखकर रख देते थे। उनकी सेक्रेटरी श्रीमती बारबरा यंग को उन्हें इकट्ठी कर प्रकाशित करवाने का श्रेय जाता है। उन्हें हर बात या कुछ कहने के पूर्व एक या दो वाक्य सूत्र रूप में सूक्ति कहने की आदत थी। वे कहते थे जिन विचारों को मैंने सूक्तियों में बंद किया है, मुझे अपने कार्यों से उनको स्वतंत्र करना है। 1926 में उनकी पुस्तक जिसे वे कहावतों की पुस्तिका कहते थे, प्रकाशित हुई थी। इन कहावतों में गहराई, विशालता और समयहीनता जैसी बातों पर गंभीर चिंतन मौजूद है। 


उनमें अद्भुत कल्पना शक्ति थी। वे अपने विचारों के कारण कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर के समकक्ष ही स्थापित होते थे। उनकी रचनाएं 22 से अधिक भाषाओं में देश-विदेश में तथा हिन्दी, गुजराती, मराठी, उर्दू में अनुवादित हो चुकी हैं। इनमें उर्दू तथा मराठी में सबसे अधिक अनुवाद प्राप्त होते हैं। उनके चित्रों की प्रदर्शनी भी कई देशों में लगाई गई, जिसकी सभी ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की। वे ईसा के अनुयायी होकर भी पादरियों और अंधविश्वास के कट्टर विरोधी रहे। देश से निष्कासन के बाद भी अपनी देशभक्ति के कारण अपने देश हेतु सतत लिखते रहे। 48 वर्ष की आयु में कार दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल होकर 10 अप्रैल 1931 को उनका न्यूयॉर्क में ही देहांत हो गया। उनके निधन के बाद हजारों लोग उनके अंतिम दर्शनों को आते रहे। बाद में उन्हें अपनी जन्मभूमि के गिरजाघर में दफनाया गया।

** हिन्दी विकिपीडिया से साभार **

जनवरी 25, 2012

परदा


मैं मौत के बाद भी जीऊँगा,  और मैं तुम्हारे कानों में गाऊँगा,
मैं तुम्हारे आसन पर बैठूँगा हालाँकि बिना शरीर के

और मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे खेतों में जाऊँगा
एक अदृश्य आत्मा बनकर,
मैं तुम्हारे पास तुम्हारी आग के सहारे बैठूँगा 
एक अदृश्य अतिथि बनकर,

मौत तो कुछ भी नहीं बदलती, परदे के अलावा
जो की हमारे चेहरे पर पड़ा रहता है,

 - खलील जिब्रान 



जनवरी 09, 2012

सात बार अपनी आत्मा से घृणा


मैंने सात बार अपनी आत्मा से घृणा की -

पहली बार, जब मैंने उसे उच्चता प्राप्ति की अभिलाषा में हतोत्साह पाया|

दूसरी बार, जब मैंने उसे अपंग के सामने लंगड़ाते पाया|

तीसरी बार, जब उसे सरल या कठिन का चुनाव करना था और उसने सरल को चुना |

चौथी बार, जब उसने एक पाप किया और यह सोचकर संतोष कर लिया की अन्य भी यह पाप करते हैं|

पाँचवी बार, जबकि कमज़ोरी के प्रति उसने धैर्य दिखाया और अपनी इस धैर्यशीलता को शक्ति का प्रतीक बताया|

छठी बार, जबकि उसने एक चेहरे की बदसूरती पर घृणा एक नज़र डाली और यह न समझा की यह उसी का एक रूप है|

और सांतवी बार तब, जबकि उसने प्रशंसा का एक गीत गाया और इसे अपना 'गुण' व्यक्त किया|