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फ़रवरी 24, 2012

पूर्णिमा का चाँद




पूर्णिमा का चाँद अपनी सम्पूर्ण आभा लेकर नगर पर उदित हुआ और सभी कुत्ते चाँद की और देखकर भौंकने लगे ।

केवल एक कुत्ता, जो चुप था, अपनी गंभीर वाणी में बोला "व्यर्थ में शांति को जगाकर उसकी निद्रा भंग न करो। तुम्हारे भूंकने से चाँद ज़मीन पर तो आने से रहा ।"

इस पर सब कुत्तों ने भौंकना बंद कर दिया और वहाँ सन्नाटा छा गया ; लेकिन वही उपदेशक कुत्ता शांति बनाये रखने के लिए सारी रात भौंकता रहा ।  

- खलील जिब्रान 


18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सार्थकता लिए हुए उत्‍तम विचार ..

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  2. इसी को कहते हैं ....पर उपदेश कुशल बहुतेरे .......... अच्छा प्रसंग लिखा है आपने

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  3. इस बार तो जिब्रान एक पहेली लेकर आए हैं...कक्षा में छात्र बोलते हैं शिक्षक के आ जाने पर वे तो चुप हो जाते हैं पर शिक्षक तो बोलता ही है, जो उपदेशक उनकी ऊर्जा व्यर्थ खोने से बचा सका वह खुद उसे बिना किसी कारण के क्यों खोयेगा...अहंकारी हो तो बात और है.
    शायद वह यह कहना चाहते हैं कि हम जिस बात के लिये अन्यों को टोकते हैं स्वयं भी उसके प्रति सजग रहना चाहिए, शालिनी जी तब ठीक कह रही हैं.

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    1. बेनामीफ़रवरी 25, 2012

      हाँ अनीता जी आपकी दूसरी बात सही है यहाँ इशारा उपदेशक को पहले स्वयं को बदलने को लेकर ही है ।

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  4. practice what u preach....easy to say hard to practice....

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  5. छोटी सी कहानी बहुत कुछ कह गयी.. शालिनी जी की बात -१...अनीता जी कि बात - २ ... और मेरा कहना है कि इस कहानी का मतलब यह भी तो हो सकता है कि एक अच्छा व्यक्ति बुरों का सही राह पे ले जाने के चक्कर में बुरे के भंवर में खुद फंस सकता है... सादर

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    1. बेनामीफ़रवरी 28, 2012

      बिलकुल नूतन जी....ये भी एक नज़रिया है सहमत हूँ आपकी बात से.....शुक्रिया आपका।

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  6. अक्सर ऐसा ही होता है......

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  7. अति उत्तम,सराहनीय प्रस्तुति,प्रसंग अच्छा लगा .....

    NEW POST काव्यान्जलि ...: चिंगारी...

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  8. ख़लील जिब्रान के बारे में यदा-कदा कुछ न कुछ पढ़ा है. आपके इस बलॉग पर काफी कुछ मिला. उसके लिए आभार.

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जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...