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नवंबर 13, 2013

विवाह



एक दूसरे का प्याला तो भरो, लेकिन एक ही प्याले से मत पियो । साथ नाचो, गाओ पर फिर भी अपनी निकटता के बीच कहीं-कहीं अन्तराल भी छूट जाने दो| एक दूसरे से प्रेम तो करो, किन्तु प्रेम को पाँव की ज़ंजीर मत बनाओ | एक जगह पर खड़े तो रहो, किन्तु बहुत अधिक सट मत जाओ । जैसे वीणा के तार एक ही राग में कंपित होते हुए भी अलग-अलग हैं । हृदयों को अर्पित करो लेकिन एक दूसरे के सरंक्षण में मत रखो | 
                                                   
   - खलील जिब्रान

सितंबर 30, 2013

चेहरे



मैंने हजारों आकृति वाला एक चेहरा देखा है और ऐसा चेहरा भी देखा है जिसका एक ही रुख था, जैसे वह साँचे में ढला हो ।

मैंने एक चेहरा देखा है जिसकी चमक की तह में मैंने उसके भीतर की  कुरूपता  पाई थी, और ऐसा चेहरा देखा है जिसकी खूबसूरती देखने के लिए मुझे उसकी दमक का परदा उठाना पड़ा था ।

मैंने एक बुढा चेहरा देखा है, जो शून्यता की रेखाओं से परिपूर्ण था और मैंने ऐसा चिकना चेहरा भी देखा है, जिस पर सब चीजें खुदी हुई थीं ।

मैं इन सब चेहरों से अच्छी तरह वाकिफ हूँ, क्योंकि मैं उन्हें उस जाल के भीतर से देखता हूँ जो मेरी आँखें बुनती है और उनके असली रूप को पहचान लेता हूँ ।

- खलील जिब्रान 



अगस्त 24, 2013

शिखर



हम सभी अपनी अभिलाषाओं के उच्चतम शिखर के आरोही हैं । यदि एक साथी हमारे साजो-सामान को चुरा लेता है तो हमें उस पर दया व्यक्त करनी चाहिए, क्योंकि हमें तो उसके कारण भार अनुभव होता था।

यह चोरी का भार उसके लिए तो चढ़ना दूभर कर देगा तथा उसका मार्ग लम्बा कर देगा । और यदि तुम उसे हाँफता हुआ देखो तो विनम्र भाव से उसे दो कदम सहायता पहुँचा दो । यह तुम्हारी चाल और भी त्वरित कर देगा ।

- खलील जिब्रान    



जुलाई 18, 2013

वास्तविकता



दूसरे व्यक्ति की वास्तविकता उसमें नहीं है, जो कुछ वह तुम पर व्यक्त करता है, बल्कि उसमें है जो कुछ वह तुम पर व्यक्त नहीं कर पाता।

इसलिए यदि तुम उसे जानना चाहते हो तो उसकी उन बातों को न सुनो, जिन्हें वह सुनाता है अपितु उन बातों को समझो, जिन्हें वह नहीं कह पाता।

- खलील जिब्रान 

जून 29, 2013

सुन्दरता और कुरूपता



एक दिन सुन्दरता और कुरूपता की समुद्र के किनारे मुलाक़ात हुई । दोनों ने एक  दूसरे से कहा "आओ समुद्र में स्नान करें"

दोनों ही अपने -अपने कपडे उतार के समुद्र में तैरने लगीं ।

थोड़ी देर में कुरूपता किनारे पर आई और सुन्दरता के कपड़े अपने बदन पर सजाकर चलती बनी । जब सुन्दरता समुद्र से बहार आई तो उसने देखा कि उसके कपड़े गायब थे । नग्न रहने में उसे शर्म महसूस हुई तो उसने हारकर कुरूपता के कपड़े पहन लिए और अपनी राह ली ।

आज तक संसार के लोग कुरूपता को सुन्दरता और सुन्दरता को कुरूपता समझने कि भूल कर रहे हैं ।

फिर भी कुछ लोग ऐसे हैं जो सुन्दरता के चेहरे से परिचित हैं और उसके बदले हुए कपड़ों में भी उसे पहचान लेते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो कुरूपता को पहचानते हैं और उनकी आँखों से उसका सच्चा स्वरुप छुपा नहीं रह पाता  ।

- खलील जिब्रान   

मई 27, 2013

एक ही कविता


मुझसे कहा जाता है, "इहलोक (भौतिक जगत) के भोग या परलोक की शांति में से किसी एक को चुन लो।"

और मैं उनसे कहता हूँ, "मैंने दोनों को ही चुन लिया है - इहलोक के आनंदों और परलोक की शांति को।"

"क्योंकि मैं जानता हूँ की उस विराट कवि ने एक ही कविता लिखी है । वही समझी भी पूर्णतया से जाती है और उसका गान भी पूर्ण रूप में संभव है।"

- ख़लील ज़िब्रान 


अप्रैल 17, 2013

पवित्र नगर



पवित्र नगर की राह में, मैं एक यात्री से मिला और उससे पूछा, " क्या पवित्र नगर (तीर्थ) का यही मार्ग है?"

उसने कहा " तुम मेरा अनुगमन करो, एक दिन में ही तुम वहाँ पहुँच जाओगे।"

मैंने उसका अनुगमन किया। हम कई दिन और कई रात चलते रहे, फिर भी पवित्र नगर तक नहीं पहुँच सके ।

और आश्चर्यजनक बात तो यह है कि वह मुझ पर ही क्रोधित हुआ, जबकि स्वयं उसने मुझे अशुद्ध पथ पर डाला था ।

मार्च 05, 2013

उदारता


उदारता उस वस्तु के दान में नहीं, जिसकी तुम्हारी अपेक्षा दूसरे को अधिक आवशयकता है, बल्कि उस वस्तु के दान में है , जिसकी दूसरे की अपेक्षा तुम्हें स्वयं अधिक आवशयकता है ।

- खलील जिब्रान


फ़रवरी 01, 2013

द्वितीय



"मेरा वह द्वितीय जन्म था, जबकि मेरी आत्मा तथा मेरी देह ने परस्पर प्रेम प्रारंभ किया और मिलकर एक हो गए ।"

- खलील जिब्रान 



जनवरी 04, 2013

बाँसुरी



भारी है मेरी आत्मा अपने स्वयं के पके हुए फल से
कौन अब आएगा, खायेगा और तृप्त होगा?
मेरी आत्मा लबालब भरी है मेरी ही मदिरा से 
कौन अब ढालेगा, पियेगा और ठंडा होगा?

काश मैं एक वृक्ष होता, बिना फूल और बिना फल का 
क्योंकि अधिकता की पीड़ा उजड़ेपन से कहीं अधिक कड़वी है 
और अमीर का दुःख, जिसे कोई ग्रहण नहीं करता 
कहीं बड़ा है एक भिखारी की निर्धनता से, जिसे कोई नहीं देता

काश मैं एक कुआँ होता, सुखा और झुलसा हुआ 
और मनुष्य मेरे अन्दर पत्थर फेंकते 
क्योंकि यह अच्छा है व्यय हो जाना  
अपितु जीवित जलकर उद्गम बनना 
जबकि मनुष्य उसकी बगल से गुजरें और उसका पान न करें 

काश मैं एक बाँसुरी होता, पैर के नीचे कुचली हुई 
क्योंकि यह चाँदी के तार वाली एक वीणा होने से अच्छा है 
ऐसे मकान में, जिसके मालिक की उँगलियाँ न हों 
और जिसके बच्चे बहरे हों,   

- खलील जिब्रान