पवित्र नगर की राह में, मैं एक यात्री से मिला और उससे पूछा, " क्या पवित्र नगर (तीर्थ) का यही मार्ग है?"
उसने कहा " तुम मेरा अनुगमन करो, एक दिन में ही तुम वहाँ पहुँच जाओगे।"
मैंने उसका अनुगमन किया। हम कई दिन और कई रात चलते रहे, फिर भी पवित्र नगर तक नहीं पहुँच सके ।
और आश्चर्यजनक बात तो यह है कि वह मुझ पर ही क्रोधित हुआ, जबकि स्वयं उसने मुझे अशुद्ध पथ पर डाला था ।
ऐसा ही होता है.....
जवाब देंहटाएंवाह! क्या सोच है |
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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गहन अभिवयक्ति......
जवाब देंहटाएंसुंदर बोध कथा..पवित्र नगर का राह बताने वाला कोई कोई ही होता है..और वह राह अपने ही भीतर से होकर जाती है..
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायक प्रसंग!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आप सभी लोगों का ।
जवाब देंहटाएंBhai imran ji
जवाब देंहटाएंKya Dharmguruon ke bare men ye vichar hain? Mujhe to yahi samjh men aaya.