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अप्रैल 17, 2013

पवित्र नगर



पवित्र नगर की राह में, मैं एक यात्री से मिला और उससे पूछा, " क्या पवित्र नगर (तीर्थ) का यही मार्ग है?"

उसने कहा " तुम मेरा अनुगमन करो, एक दिन में ही तुम वहाँ पहुँच जाओगे।"

मैंने उसका अनुगमन किया। हम कई दिन और कई रात चलते रहे, फिर भी पवित्र नगर तक नहीं पहुँच सके ।

और आश्चर्यजनक बात तो यह है कि वह मुझ पर ही क्रोधित हुआ, जबकि स्वयं उसने मुझे अशुद्ध पथ पर डाला था ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. वाह! क्या सोच है |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page


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  2. सुंदर बोध कथा..पवित्र नगर का राह बताने वाला कोई कोई ही होता है..और वह राह अपने ही भीतर से होकर जाती है..

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  3. प्रेरणादायक प्रसंग!

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  4. शुक्रिया आप सभी लोगों का ।

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  5. Bhai imran ji
    Kya Dharmguruon ke bare men ye vichar hain? Mujhe to yahi samjh men aaya.

    जवाब देंहटाएं

जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...