जब तुम्हारी आत्मा पवन पर सवार होकर भ्रमण करने गयी होती है और जब तुम अकेले और असरंक्षित रह जाते हो, तभी तुम दूसरों के प्रति फलतः अपने ही प्रति अपराध करते हो|
कोई पवित्र और पुण्यात्मा भी उस उच्चतम से ऊँचा नहीं उठ सकता, जो तुममे हरेक में मौजूद है| उसी प्रकार कोई दुष्ट और दुर्बल उस निकृष्टतम से नीचे नहीं गिर सकता, जो तुममे मौजूद है| जैसे एक पत्ती भी सम्पूर्ण पेड़ की खामोश जानकारी के बिना पीली नहीं पड़ती, वैसे ही अपराधी तुम सबकी छिपी हुई इच्छा के बिना अपराध नहीं कर सकता|
तुम उसे क्या सज़ा दोगे, जो शरीर से तो ईमानदार है, लेकिन मन से चोर है?
और तुम उसे क्या दंड दोगे, जो देह की हत्या करता है, लेकिन जिस की खुद की आत्मा का हनन किया गया है?
और तुम उन्हें कैसे सज़ा दोगे, जिनका पश्च्याताप पहले ही उनके दुष्कृत्यों से अधिक है?
- खलील जिब्रान