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जनवरी 31, 2011

अपराध और दंड


जब तुम्हारी आत्मा पवन पर सवार होकर भ्रमण करने गयी होती है और जब तुम अकेले और असरंक्षित रह जाते हो, तभी तुम दूसरों के प्रति फलतः अपने ही प्रति अपराध करते हो|

कोई पवित्र और पुण्यात्मा भी उस उच्चतम से ऊँचा नहीं उठ सकता, जो तुममे हरेक में मौजूद है| उसी प्रकार कोई दुष्ट और दुर्बल उस निकृष्टतम से नीचे नहीं गिर सकता, जो तुममे मौजूद है| जैसे एक पत्ती भी सम्पूर्ण पेड़ की खामोश जानकारी के बिना पीली नहीं पड़ती, वैसे ही अपराधी तुम सबकी छिपी हुई इच्छा के बिना अपराध नहीं कर सकता|

तुम उसे क्या सज़ा दोगे, जो शरीर से तो ईमानदार है, लेकिन मन से चोर है?

और तुम उसे क्या दंड दोगे, जो देह की हत्या करता है, लेकिन जिस की खुद की आत्मा का हनन किया गया है?

और तुम उन्हें कैसे सज़ा दोगे, जिनका पश्च्याताप पहले ही उनके दुष्कृत्यों से अधिक है?
                                                                              
                                                                  - खलील जिब्रान

जनवरी 09, 2011

क्रय - विक्रय


धरती अपनी उपज तुम्हारे हवाले करती है| और अगर तुम अपनी अंजलि भरना ही जान लो, तो तुम्हे कोई आभाव नहीं रहेगा| पृथ्वी के उपहारों के लेन - देन में ही तुमको भरपूर प्राप्ति हो जाएगी और तुम्हे संतोष होगा|

लेकिन अगर यह लेन - देन प्रेम, उदार और न्यायपूर्ण न होगा तो वह कुछ लोगों को लोभ की ओर ले जायेगा और कुछ लोगों को भूखा रहने की ओर|
                                                                           - खलील जिब्रान