धरती अपनी उपज तुम्हारे हवाले करती है| और अगर तुम अपनी अंजलि भरना ही जान लो, तो तुम्हे कोई आभाव नहीं रहेगा| पृथ्वी के उपहारों के लेन - देन में ही तुमको भरपूर प्राप्ति हो जाएगी और तुम्हे संतोष होगा|
लेकिन अगर यह लेन - देन प्रेम, उदार और न्यायपूर्ण न होगा तो वह कुछ लोगों को लोभ की ओर ले जायेगा और कुछ लोगों को भूखा रहने की ओर|
- खलील जिब्रान
आज लेन -देन में न न्याय है न प्रेम न उदारता, कुछ का लोभ कईयों को भूखा रहने पर मजबूर कर रहा है, हम जिब्रान जैसे संतों की वाणी को भुला बैठे हैं, इसका खामियाजा भुगत रहे हैं !
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना। इमरान भाई, पढवाने का शुक्रिया।
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कादेरी भूत और उसका परिवार।
मासिक धर्म और उससे जुड़ी अवधारणाएं।
yahi baat to sabko samajhnaa hai.......pata nahi kab samjhenge
जवाब देंहटाएंbilkul sahi bat kahi gai hai.....thanks
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की बधाई एवं शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंnice one..
जवाब देंहटाएंHappy Republic Day..गणतंत्र िदवस की हार्दिक बधाई..
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rightly said..........that we used to call sustainable development....thats the need of time
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