मैंने हजारों आकृति वाला एक चेहरा देखा है और ऐसा चेहरा भी देखा है जिसका एक ही रुख था, जैसे वह साँचे में ढला हो ।
मैंने एक चेहरा देखा है जिसकी चमक की तह में मैंने उसके भीतर की कुरूपता पाई थी, और ऐसा चेहरा देखा है जिसकी खूबसूरती देखने के लिए मुझे उसकी दमक का परदा उठाना पड़ा था ।
मैंने एक बुढा चेहरा देखा है, जो शून्यता की रेखाओं से परिपूर्ण था और मैंने ऐसा चिकना चेहरा भी देखा है, जिस पर सब चीजें खुदी हुई थीं ।
मैं इन सब चेहरों से अच्छी तरह वाकिफ हूँ, क्योंकि मैं उन्हें उस जाल के भीतर से देखता हूँ जो मेरी आँखें बुनती है और उनके असली रूप को पहचान लेता हूँ ।
- खलील जिब्रान
चेहरे पे चेहरा....असली रुप को पहचानना मुश्किल होजाता है....खलील जिब्राम की बात ही और है.बहुत सही कहा...
जवाब देंहटाएंbehtreen....
जवाब देंहटाएंachchha laga
जवाब देंहटाएंचेहरे पर चेहरा लगाना ही तो सभ्यता मानी जाती है..असलियत यदि सबको जाहिर कर दें तो इस जहाँ में शायद कोई मित्रता टिक नहीं पायेगी...जिब्रान की नजर पैनी है वह भीतर तक झांक लेती है...
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आपने अनीता जी । मुखौटे लगाना एक विवशता भी है संसार में |
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