हम सभी अपनी अभिलाषाओं के उच्चतम शिखर के आरोही हैं । यदि एक साथी हमारे साजो-सामान को चुरा लेता है तो हमें उस पर दया व्यक्त करनी चाहिए, क्योंकि हमें तो उसके कारण भार अनुभव होता था।
यह चोरी का भार उसके लिए तो चढ़ना दूभर कर देगा तथा उसका मार्ग लम्बा कर देगा । और यदि तुम उसे हाँफता हुआ देखो तो विनम्र भाव से उसे दो कदम सहायता पहुँचा दो । यह तुम्हारी चाल और भी त्वरित कर देगा ।
- खलील जिब्रान
आपकी इस उत्कृष्ट रचना का प्रसारण कल रविवार, दिनांक 25/08/2013 को ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in/ पर भी .. कृपया पधारें !
जवाब देंहटाएंnice one....
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक चिंतन...
जवाब देंहटाएंगहन अभिवयक्ति......
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा...
जवाब देंहटाएंबेहद प्रेरक स्तंभ !
जवाब देंहटाएंप्रेरणात्मक प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंवाह ! कितना गहन संदेश छिपा है जिब्रान के इस कथन में, इस जगत में कोई अन्य हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता, यदि वह हमारा सहयोगी है तब तो वह हमें पथ पर आगे ले ही जायेगा, यदि विरोधी है तब भी वह हमारे भीतर से नकारात्मकता को निकालने में सहायता ही करेगा, उसके कारण हीं तो भीतर के कुसंस्कार बाहर आ सकेंगे, उसका भी धन्यवाद ही करना होगा .
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनीता जी इतनी सुन्दर व्य्ख्यात्मक टिप्पणी के लिए |
हटाएंआप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया |
जवाब देंहटाएंअनीता जी दरअसल खलील जिब्रान कहना कुछ और चाहते हैं लेकिन आप समझ कुछ और रही हैं।
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