तुम अपने दुःख और आभाव के दिनों में प्रार्थना करते हो ; यदि तुम अपने उल्लास की पूर्णता और समृद्धि के दिनों में भी प्रार्थना करो तो कितना अच्छा हो ।
जब तुम प्रार्थना करते हो, तब तुम वायुमंडल में उन लोगों के से मिलने के लिए ऊपर उठते हो, जो उन्ही क्षणों में प्रार्थना कर रहे होते हैं और जिनसे तुम सिवाय प्रार्थना के समय कभी नहीं मिल सकते।
याचना के उद्देश्य के अतिरिक्त और किसी उद्देश्य के लिए तुम प्रार्थना करो तो तुम्हे कुछ न मिलेगा और यदि तुम दीन बनने की भावना से भी प्रार्थना करते हो, तब भी तुम्हारा उद्धार न होगा ।
ईश्वर तुम्हारे शब्दों को तब तक नहीं सुनता, जब तक कि वह स्वयं ही उन शब्दों को तुम्हारे होठों द्वारा नहीं बोलता ।
प्रार्थना हो तो ऐसे कि " हम में ये तेरी ही कामना है जो कामना करती है "
" हम तुझसे किसी भी चीज़ कि याचना नहीं कर सकते, क्योंकि तू हमारे अभावों को उनके जन्म लेने से पूर्व ही जानता है "
" तू ही हमारी आवश्यकता है, और हमे अपने आपको अधिक से अधिक देकर भी तू हमे सब कुछ दे देता है "
- खलील जिब्रान
विचारो की गहनता शब्दों में मुखर हो रही ... सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसचमुच ईश्वर जब तक इतना करीब न हो कि उसकी सांसे सुनाई पड़ें प्रार्थना सच्ची नहीं हो सकती...बहुत सुंदर पोस्ट !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत ही प्रेरणादायक पंक्तियाँ हैं........
जवाब देंहटाएंबहुत सही भाई....!
जवाब देंहटाएंआप सभी लोगों का तहेदिल से शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंप्रार्थना हो तो ऐसे कि " हम में ये तेरी ही कामना है जो कामना करती है "
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर विचार!
सादर