मैं मौत के बाद भी जीऊँगा, और मैं तुम्हारे कानों में गाऊँगा,
मैं तुम्हारे आसन पर बैठूँगा हालाँकि बिना शरीर के
और मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे खेतों में जाऊँगा
एक अदृश्य आत्मा बनकर,
मैं तुम्हारे पास तुम्हारी आग के सहारे बैठूँगा
एक अदृश्य अतिथि बनकर,
मौत तो कुछ भी नहीं बदलती, परदे के अलावा
जो की हमारे चेहरे पर पड़ा रहता है,
- खलील जिब्रान
अगर इंसान अपनी मौत देख ले तो जीना आसान हो जाता है....
जवाब देंहटाएंकुछ इसी तरह का अनुभव भी हो जाता है....
बिकुल सही पूनम दी ......शुक्रिया|
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति .. बधाई
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस कि हार्दिक सुभकामनाएँ.
शुक्रिया जी आपको भी शुभकामनायें|
हटाएंबहुत गहन भाव ....सोच में पड़ गयी हूँ ...!!
जवाब देंहटाएंसोच में पड़ जाने के लिए ही तो पोस्ट की है अनुपमा जी :-)
हटाएंये ख्याल एक बहलावा है ...दरअसल अपनों की मौत एक ऐसा खालीपन देती है जो जीवन में कभी नहीं भरता ....
हटाएंसहमत हूँ आपसे......पर क्या मृत्यु ही अन्तत: सत्य नहीं है......संसार में सब चल रहा है हर ओर गति है....... खालीपन भी फिर भर जाता है यही क्रम चलता रहता है यही जिंदगी है |
हटाएंbahut bahut hi umda, kitni gahri baat kitne sarl shbdon me likhi hai ,itni achchi rachna hm sab ke sath baantne ke liye shukriyaa....
जवाब देंहटाएंआपका भी शुक्रिया यहाँ तक आने का और अपनी कीमती राय देने का|
हटाएंमौत तो कुछ भी नहीं बदलती, परदे के अलावा
जवाब देंहटाएंजो की हमारे चेहरे पर पड़ा रहता है,
वाह...कितनी सच्ची बात कह गए हैं खलील जिब्रान साहेब...शुक्रिया इमरान भाई उनकी बात हम तक पहुँचाने के लिए...
नीरज
बहुत बहुत शुक्रिया नीरज जी आपका...........हम तो सिर्फ ज़रिया हैं |
हटाएंबहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सुषमा जी|
हटाएंबहुत ही गहन भाव संयोजन ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सदा जी|
हटाएंमृत्यु के बाद भी सदगुरु हमारे साथ रहता है.. अशरीरी होकर वह हमारी ज्यादा मदद कर पाता है, खलील जिब्रान जैसा संत ही ऐसी बात कह सकता है...आभार!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनीता जी.सहमत हूँ आपसे|
हटाएंआपके इस उत्कृष्ठ लेखन के लिए आभार ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका |
जवाब देंहटाएंवाह...बेजोड़ रचना...बधाई
जवाब देंहटाएंआपकी रचना बहुत अच्छी लगी,लाजबाब सुंदर पंक्तियाँ,..
जवाब देंहटाएंMY NEW POST...मेरे छोटे से आँगन में...