अनेक बार तुम्हारा अंत: करण संग्राम भूमि बनता है, जहाँ तुम्हारा विवेक और तुम्हारी न्याय-बुद्धि तुम्हारी वासना एवं तृष्णा के विरुद्ध युद्ध करती है।
विवेक एकाकी राज करते हुए मर्यादित करने वाली शक्ति है और बे-लगाम वासना वह ज्वाला है जो स्वयम अपने को जलाकर रख होने तक जलती है।
तुम्हारी आत्मा तुम्हारे विवेक को वासना की ऊँचाई तक उठाए ताकि वह गा सके और तुम्हारी वासना को विवेक से संचालित होने दो ताकि वासना नित्य ही अपने विनाश में से नया जन्म पा सके और अनल पक्षी** के समान भस्म होकर पुन: जीवित हो सके।
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**ग्रीस में किवदंती है की फिनिक्स पक्षी मौत करीब आने पर आग में गिरकर जल जाता है और कुछ क्षण बाद उसकी राख़ में से वैसा-का-वैसा एक पक्षी निकलकर आकाश में उड़ने लगता है।
आपका यह प्रयास सराहनीय ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ..आभार
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सदा जी।
हटाएंभगवान बुद्ध भी यही कह गए हैं। सम्यक् होनी चाहिए दृष्टि।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया राधारमण जी। सही कहा है आपने।
हटाएंबहुत ही प्रेणादायक विचार है..... वासना पर विवेक का फर लगाना बहुत ज़रूरी है.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया शालिनी जी। सही कहा है आपने।
हटाएंबहुत बढ़िया संकलन.....!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया पूनम दी ।
हटाएंबहुत ही अच्छे विचार!!
जवाब देंहटाएंहिंदी में इतनी सरल ढंग से व्याख्या देने का आपका उद्धेश्य बहुत ही अच्छा और काबिल-ए-तारीफ़ है...
शुभकामनाएं
बहुत बहुत शुक्रिया मधुरेश जी......आपको पसंद आया समझिये प्रयास सफल हुआ ।
हटाएंकितना सही कहा है जिब्रान ने ..विवेक पूर्ण जीवन ही हमें अपने मन की गुलामी से मुक्त करता है..विवेक ही वासना को नया जन्म देता है, जो मन पहले छोटे सुख के पीछे भागता था बाद में सुख लुटाता फिरता है..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया अनीता जी ।
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