Click here for Myspace Layouts

मार्च 28, 2011

विशाल परिधि


"अभी कल तक मैं यह समझता था की मेरी आत्मा जीवन की विशाल परिधि में स्पंदन रहित एक छोटा सा कांपता हुआ अंशमात्र है|

और आज मैंने जाना की विशाल परिधि मैं ही हूँ, और इन स्पंदनमय अंशों से युक्त यह समस्त जीवन मेरे ही अन्दर गतिशील है |"
                                                                    - खलील जिब्रान

4 टिप्‍पणियां:

  1. वाह,क्या बात है !अगर हम अपनी परिधि जान लें तो सारी मुश्किलें स्वतः ख़त्म हो जायं !

    इमरान साहब,इस पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें !

    जवाब देंहटाएं
  2. आत्मा ही केन्द्र पर है और आत्मा ही परिधि पर ! कितना अदभुत है यह सत्य, जैसे कबीर का यह वचन कि पहले मैंने समझा, 'बूंद समानी समुद में' फिर जाना कि 'समुद समाना बूंद में ' इस सत्य को जो अनुभव कर ले वही मुक्त है न!

    जवाब देंहटाएं
  3. जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...
    सही...एकदम सही !!
    हमें अपनी तरफ से सभी की मंगल कामना ही करनी चाहिए...!!

    जवाब देंहटाएं

जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...