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अक्टूबर 01, 2011

आत्मज्ञान


तुम्हारे हृदय का मौन तुम्हारे दिनों और रातों का ज्ञाता है | जिसे तुमने हमेशा से अपने विचारों में जाना है| उसे तुम शब्दों में भी जानना चाहते हो, आत्मज्ञान एक समुद्र है, असीम और आगाध...........
                                                      - खलील जिब्रान

7 टिप्‍पणियां:

  1. आत्मज्ञान एक समुद्र है, असीम और आगाध...
    बिल्‍कुल सच्‍ची बात ...आभार इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये ।

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  2. जो ज्ञाता है वही हमें मार्गदर्शन करता है.बहुत सुन्दर.आभार.

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  3. जो ज्ञाता है वही हमें मार्गदर्शन करता है.बहुत सुन्दर.आभार.

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  4. एकदम सही.....
    मौन में जानने के बाद ही ज्ञान मुखरित होता है...!
    ऐसा मेरा मानना है....शायद सही .....शायद गलत....!!

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  5. बहुत सुंदर विचार... ज्ञाता ही ज्ञान है... मौन में दोनों एक हो जाते हैं... शब्दों में कहा नहीं जा सकता क्योंकि वह असीम है. अगाध भी ! दो विचारों के मध्य जो सूक्ष्म जगह है वहीं उसे जान सकते हैं.

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  6. खलील जिब्रान के विचारों से अवगत कराने के निए धन्यवाद । मेरे पोस्ट पर भी आएँ ।

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जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...