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जून 14, 2011

बादल



यदि तुम एक बादल पर बैठ जाओ और नीचे देखो तो तुम पाओगे कि दो देशों को विभाजित करने वाली किसी सीमा का अस्तित्व ही नहीं है, और न ही एक खेत को दूसरे खेत से अलग करने का निर्देशक पत्थर ही है |

दयनीय तो यह है कि तुम बादल पर बैठ ही नहीं सकते |

                                                                      -खलील जिब्रान

8 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामीजून 14, 2011

    काश की ऐसा हो पता...!!!

    ***punam***

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  2. खलील जिब्रान कहना चाहते हैं कि यदि हम चाहें तो हम बादल पर बैठ सकते हैं ! वास्तव में आकाश केवल बाहर ही नहीं हमारे भीतर भी है जिसे चिदाकाश कहते हैं जहाँ जाकर सारे भेद मिट जाते हैं.....

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  3. बेनामीजून 15, 2011

    @ अनीता जी बिलकुल सही कहा आपने.....बादल का यहाँ यही मतलब है |

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  4. सच है, सीमाएं प्रकृति ने नहीं, वो तो हमने खींची हैं।

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जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...