क्या हमारे समस्त कर्म और हमारी समस्त धारणायें ही धर्म नहीं हैं |
कौन है ? जो जीवन के हर एक पल को अपने सामने बिछाकर कह सकता है, " इतना ईश्वर का हिस्सा और इतना मेरी आत्मा के हिस्से में है, और इतना मेरे शरीर के हिस्से में |
तुम्हारा दैनिक जीवन ही तुम्हारा मंदिर और धर्म है | जब भी इसमें प्रवेश करो अपना सब कुछ साथ लेकर जाओ |
- खलील जिब्रान
कर्म ही धर्म है ..
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही ..
आभार मार्गदर्शन के लिए.
बहुत ही सही बात.
जवाब देंहटाएंखलील जिब्रान का जवाब नहीं।------
जवाब देंहटाएंजादुई चिकित्सा!
इश्क के जितने थे कीड़े बिलबिला कर आ गये...।
क्या हमारे समस्त कर्म और हमारी समस्त धारणायें ही धर्म नहीं हैं
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कथन ... ।
कितना सुकून देते हैं संतों के वचन, अद्भुत है खलील जिब्रान का दर्शन... अद्वैत झलकता है यहाँ... सबको स्वीकार करें तो कोई दुविधा बचती ही नहीं... दुई का खेल जब तक है तभी तक दुःख है आभार !
जवाब देंहटाएं@ अनीता जी
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा है आपने.....संतवाणी तो अमृत के सामान है.....सच है जब तक 'दो' हैं 'एक' से मिलन संभव नहीं है|
DHARM KE IS ASLI ROOP KO SAMAJH JAYE AGAR INSAAN
जवाब देंहटाएंTO DUNIYA KI SAARI TAKLIFEN HI KHATM HO JAAYE,KOI DHARM KE NAAM PAR LADTA HAI, KOI RAAJNITI KARTA HAI AUR KOI DHARM KE SAATH KHELTA HAI...SABSE KHATARNAK HAI DHARM SE KHELNA
...YAH INSAANIYAT KO SHARMSHAR KAR JAATA HAI!
great thought...
जवाब देंहटाएंसही कहा है आपने,
जवाब देंहटाएंआभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर विचार .
जवाब देंहटाएंसम्प्रेश्नियता की हदों के पार सुन्दर अभिव्यक्ति प्रकृति सी ही मनोरम.
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