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नवंबर 14, 2011

भला और बुरा


बुराई उस यातना के सिवा क्या है ? जो सज्जनता की अपनी ही भूख और अपनी ही प्यास उसे दिया करती है |

तुम भले हो यदि अपनी आत्मा के साथ एकाकार हो जाओ |
तुम भले हो यदि तुम आत्मदान करने की कोशिश करते हो |
तुम भले हो यदि अपने वचनों में पूरी तरह जागरूक हो |
तुम भले हो यदि तुम अपने लक्ष्य की ओर द्रढ़ता और साहस के साथ क़दम बड़ा रहे हो |
                                                           
                                                                            -  खलील जिब्रान

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही बढि़या प्रस्‍तुति ...आभार ।

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  2. जिब्रान का यह वचन अद्भुत है...सचमुच बुराई यातना के सिवा कुछ भी नहीं, क्योंकि भीतर अच्छाई का साम्राज्य है.. वह बुराई को बर्दाश्त नहीं कर सकता... खुद को पीड़ा से गुजारे बिना कोई बुरा नहीं हो सकता...

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  3. बेनामीनवंबर 14, 2011

    @ अनीता जी आपकी टिप्पणी ब्लॉग की पोस्ट को समझने में और लोगों के लिए भी मददगार होती है और पोस्ट की खूबसूरती में इज़ाफा भी करती है |

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  4. जो अपनी आत्मा से एकाकार हो जाता है

    वो मन,कर्म और वचन की शुद्धता रखता है...

    इनमें से एक भी छूटा तो फिर सज्जनता कैसी ?

    और अपनी आत्मा से साक्षात्कार कैसा....??

    लेकिन कितने लोग इसे समझते हैं....पता नहीं...!!

    उंगली सदैव सामने वाले की तरफ ही रहती है...!!

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  5. बहुत बढ़िया....कुछ ऐसा जो आमतौर पर पढ़ने नहीं मिला करता..। मेरे पोस्ट पर आकर मेरा मनोबल बढ़ाएं ।.बधाई ।

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  6. भाई, बहुत अच्छा लिखा है।
    बेहतरीन प्रस्तुति।

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जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...