बुराई उस यातना के सिवा क्या है ? जो सज्जनता की अपनी ही भूख और अपनी ही प्यास उसे दिया करती है |
तुम भले हो यदि अपनी आत्मा के साथ एकाकार हो जाओ |
तुम भले हो यदि तुम आत्मदान करने की कोशिश करते हो |
तुम भले हो यदि अपने वचनों में पूरी तरह जागरूक हो |
तुम भले हो यदि तुम अपने लक्ष्य की ओर द्रढ़ता और साहस के साथ क़दम बड़ा रहे हो |
- खलील जिब्रान
बहुत ही बढि़या प्रस्तुति ...आभार ।
जवाब देंहटाएंजिब्रान का यह वचन अद्भुत है...सचमुच बुराई यातना के सिवा कुछ भी नहीं, क्योंकि भीतर अच्छाई का साम्राज्य है.. वह बुराई को बर्दाश्त नहीं कर सकता... खुद को पीड़ा से गुजारे बिना कोई बुरा नहीं हो सकता...
जवाब देंहटाएं@ अनीता जी आपकी टिप्पणी ब्लॉग की पोस्ट को समझने में और लोगों के लिए भी मददगार होती है और पोस्ट की खूबसूरती में इज़ाफा भी करती है |
जवाब देंहटाएंbahut achchhi prastuti..
जवाब देंहटाएंजो अपनी आत्मा से एकाकार हो जाता है
जवाब देंहटाएंवो मन,कर्म और वचन की शुद्धता रखता है...
इनमें से एक भी छूटा तो फिर सज्जनता कैसी ?
और अपनी आत्मा से साक्षात्कार कैसा....??
लेकिन कितने लोग इसे समझते हैं....पता नहीं...!!
उंगली सदैव सामने वाले की तरफ ही रहती है...!!
बहुत बढ़िया....कुछ ऐसा जो आमतौर पर पढ़ने नहीं मिला करता..। मेरे पोस्ट पर आकर मेरा मनोबल बढ़ाएं ।.बधाई ।
जवाब देंहटाएंभाई, बहुत अच्छा लिखा है।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति।
bahut khubsurat panktiya...
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