Click here for Myspace Layouts

दिसंबर 09, 2010

वस्त्र


तुम्हारे वस्त्र तुम्हारे बहुत से सुन्दर अंश को छिपा लेते हैं, लेकिन असुन्दर  को नहीं| हालाँकि तुम वस्त्रों में अपनी गुप्तता की आज़ादी खोजते हो, लेकिन तुमको प्राप्त होते हैं बंधन और बाधा|

काश धूप और वायु से तुम्हारा मिलन तुम्हारी त्वचा द्वारा अधिक होता और वस्त्रों द्वारा कम| क्योंकि जीवन के प्राण सूर्य के प्रकाश में हैं और जीवन के हाथ हवा के झोंकों में हैं|

भूलो मत की मलिन मन की आँखों के सम्मुख लज्जा ढाल के सामान है| और जब मलिन मन ही न होंगे, तब लज्जा केवल एक बेडी और विकृत करने वाली वस्तु के सिवा क्या होगी?

और भूलो मत की धरती तुम्हारी नंगी पग-तलियों का स्पर्श पाकर प्रसन्न होती है और पवन तुम्हारे केशों से अठखेलियाँ करना चाहता है|

9 टिप्‍पणियां:

  1. सचमुच धूप की छुअन, हवा की अठखेलियां, धरा का स्पर्श प्रकृति की अद्भुत सौगातें हैं जिन्हें हम जितना सराहें कम है!

    जवाब देंहटाएं
  2. bahut khoob bhai......maza aa gaya bhaw purn padh kar.

    जवाब देंहटाएं
  3. sachchhi baat bahut asan shabdo me kaha diya .........sundar

    जवाब देंहटाएं
  4. अति सुन्‍दर
    इमरान अंसारी जी आपका ब्लॉग बहुत पसंद आया है !

    जवाब देंहटाएं
  5. क्या भाव हैं !
    पढ़ कर अच्छा लगा !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

    जवाब देंहटाएं
  6. धरती तुम्हारी नंगी पग तलियों का स्पर्श पाकर अति प्रसन्न होती,
    तभी तो कन्हैया मिटटी में खेलते थे पर आज हम इसे गवारपन का नाम देते है...
    मनन करने योग्य.....

    जवाब देंहटाएं

जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...