तुम्हारे वस्त्र तुम्हारे बहुत से सुन्दर अंश को छिपा लेते हैं, लेकिन असुन्दर को नहीं| हालाँकि तुम वस्त्रों में अपनी गुप्तता की आज़ादी खोजते हो, लेकिन तुमको प्राप्त होते हैं बंधन और बाधा|
काश धूप और वायु से तुम्हारा मिलन तुम्हारी त्वचा द्वारा अधिक होता और वस्त्रों द्वारा कम| क्योंकि जीवन के प्राण सूर्य के प्रकाश में हैं और जीवन के हाथ हवा के झोंकों में हैं|
भूलो मत की मलिन मन की आँखों के सम्मुख लज्जा ढाल के सामान है| और जब मलिन मन ही न होंगे, तब लज्जा केवल एक बेडी और विकृत करने वाली वस्तु के सिवा क्या होगी?
और भूलो मत की धरती तुम्हारी नंगी पग-तलियों का स्पर्श पाकर प्रसन्न होती है और पवन तुम्हारे केशों से अठखेलियाँ करना चाहता है|
सचमुच धूप की छुअन, हवा की अठखेलियां, धरा का स्पर्श प्रकृति की अद्भुत सौगातें हैं जिन्हें हम जितना सराहें कम है!
जवाब देंहटाएंbahut khoob bhai......maza aa gaya bhaw purn padh kar.
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर।
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त्रिया चरित्र : मीनू खरे
संगीत ने तोड़ दी भाषा की ज़ंजीरें।
sachchhi baat bahut asan shabdo me kaha diya .........sundar
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर
जवाब देंहटाएंइमरान अंसारी जी आपका ब्लॉग बहुत पसंद आया है !
ati sundar..
जवाब देंहटाएंmere blog par bhi sawagat hai..
Lyrics Mantra
thankyou
क्या भाव हैं !
जवाब देंहटाएंपढ़ कर अच्छा लगा !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
bahut shandar prastuti....thanks Archana
जवाब देंहटाएंधरती तुम्हारी नंगी पग तलियों का स्पर्श पाकर अति प्रसन्न होती,
जवाब देंहटाएंतभी तो कन्हैया मिटटी में खेलते थे पर आज हम इसे गवारपन का नाम देते है...
मनन करने योग्य.....