ओ कुहरे मेरे भाई !
सफ़ेद साँस अभी तक किसी आकार में नहीं ढली है
मैं तुम्हारे पास वापस आ गया हूँ,
एक सफ़ेद साँस और बेआवाज़ होकर
एक लफ्ज़ भी अभी तक नहीं बोला,
ओ कुहरे मेरे पंखों वाले भाई ! अब हम एक साथ है
और साथ ही रहेंगे, जीवन के अगले दिन तक
कौन सी सुबह तुम्हे ओस कि बूँद बनाकर
बगीचे में लिटाएगी और मुझे
बच्चा बनाकर एक औरत के सीने पर
और हम एक दूसरे को याद रखेंगे,
ओ कुहरे मेरे भाई ! मैं वापस आ गया हूँ
एक दिल अपनी गहराईओं में सुनता हुआ
जैसा कि तुम्हारा दिल एक धड़कती हुई आकांक्षा
और तुम्हारी उद्देश्यहीन आकांक्षा कि तरह
एक सोच जो अभी तक नहीं टिकी जैसे कि तुम्हारी,
ओ कुहरे मेरे भाई !
मेरे हाथ अभी भी उन चीजों को पकडे हुए हैं
जो कि तुमने मुझे बिखेरने के लिए दी थीं
और मेरे होंठ सिले हुए हैं उस गीत पर
जो कि तुमने मुझे गाने के लिए दिया था
पर मैं तुम्हारे लिए कोई फल नहीं लाया और न तुम्हारे
पास मैं कोई आवाज़ लेकर आया हूँ
क्योंकि मेरे हाथ अंधे और मेरे होंठ खामोश हैं,
ओ कुहरे मेरे भाई !
मैंने इस दुनिया से बहुत ज़्यादा प्यार किया
और दुनिया ने मुझे वैसा ही प्यार दिया
क्योंकि मेरी सारी मुस्कुराहटें दुनिया के होंठो पर थी
और उसके सारे आँसू मेरी आँखों में
फिर भी हमारे बीच एक ख़ामोशी कि खाई थी
जो कि दुनिया नहीं भरना चाहती थी
और जिसे मैं पार नहीं कर सकता था,
ओ कुहरे मेरे भाई ! मेरे अमर भाई कुहरे
मैंने पुराने गीत अपने बच्चों को सुनाये
उन्होंने सुने और उनके चेहरे पर आश्चर्य व्याप्त था
पर कल ही वो अचानक ये गीत भूल जायेंगे
मैं नहीं जनता था कि किसके
पास तक हवा गीत नहीं ले जाएगी
हालाँकि वो गीत मेरा अपना नहीं था
लेकिन वो मेरे दिल में समां गया
और मेरे होंठो पर कुछ देर तक खेलता रहा,
ओ कुहरे मेरे भाई !
हालाँकि ये सब गुज़र गया, मैं शांति में हूँ
मेरे लिए ये काफी था कि उनके
लिए गाया जाये जो जन्म ले चुके हैं
और अगर्चे कि यह गाना मेरा अपना नहीं है
लेकिन वह मेरे दिल कि सबसे गहरी ख्वाहिश है,
ओ कुहरे मेरे भाई ! मेरे भाई कुहरे
मैं तुम्हारे साथ अब एक हूँ
अब मैं खुद "मैं" नहीं रहा
दीवारें गिर चुकी,जंजीरे टूट चुकी
मैं तुम्हारे पास आने के लिए
ऊपर उठ रहा हूँ एक कुहरा बनकर
और हम साथ-साथ सागर के ऊपर तैरेंगे
जीवन के दूसरे दिन तक
जबकि सुबह तुम्हे ओस कि बूँद बनाकर
बगीचे में लिटाएगी और मुझे
बच्चा बनाकर एक औरत के सीने पर
बेहतरीन रचना के लिए बधाई .
जवाब देंहटाएंkohre mein jiwan aksh talashti sundar saarthak rachna... ..kohre mein lipti subah ki yaad taaji karti tasveer aur sateek rachna..
जवाब देंहटाएंbehad khubsurat.
जवाब देंहटाएंकोहरे पर बढ़िया कविता....
जवाब देंहटाएंआजकल के मौसम के हिसाब से..
सुन्दर शब्दावली, सुन्दर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंवाह ...बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमौसमी खुबशुरत रचना लिखने की बधाई.....उम्दा पोस्ट
जवाब देंहटाएंमेरे नये पोस्ट लिए काव्यान्जलि..: महत्व .. में click करे
:) कोहरे को भाई कहना भला लगा.बहुत दिनों से खलील जिब्रान को पढ़ना नहीं हुआ.
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती
कुहरे के साथ एक रूह की यह गुफ्तगू कितनी अनोखी है और कितनी सच्ची... एक दिन हरेक को गुम हो जाना है इसी तरह हवा, पानी और आकाश के साथ..फिर लौट आने के लिये, आभार इस सुंदर पोस्ट के लिये.
जवाब देंहटाएं@ शुक्रिया अनीता जी....आपकी टिप्पणी के बिना पोस्ट अधूरी सी ही रहती है आपने जिब्रान साहब को बिलकुल सही समझा है यहाँ कोहरा एक रूह ही है और उसी से मुखातिब है |
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंv7: स्वप्न से अनुराग कैसा........
अंतरंगता से भीगी हुई बातें जिन्हें समझना आम इंसान की बात है क्या ?
जवाब देंहटाएंbahut khub!
जवाब देंहटाएंआपकी किसी पोस्ट की चर्चा नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार 7/1/2012 को होगी । कृपया पधारें और अपने अनमोल विचार ज़रूर दें। आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सर!
जवाब देंहटाएंसादर
अनोखी सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंसादर बधाई...
sadar abhar
जवाब देंहटाएंकोहरे से बात चीत अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंहां,कविता की गहराई समझने में वक्त लगा..
शुक्रिया.
@ विद्या जी जिब्रान साहब को समझने के लिए उनकी बातों की गहरे में जाना ही पड़ता है.सरसरी तौर पर पढ़ने से तो समझ पाना बहुत ही मुश्किल होता है.....अभी यही देखिये की कई लोगों ने महज़ इसे मौसम की एक पोस्ट समझा |
जवाब देंहटाएं